कविता काव्य देश

‘व्याख्यान’ डॉ. विजय पंजवानी, साहित्यकार, समाजसेवी धमतरी(छ.ग.)

‘व्याख्यान’

ये जो इतराते हैं

अपनी उपब्धियों पर

काश…..

उन्हें मालूम हो जाए

कि यह सब
कितना क्षण भंगुर है….
और
यह जो मैं
व्याख्यान सा दे रहा हूं
व्यास पीठ पर बैठकर…
काश
मुझे भी भान हो जाए
कि यह सब
कितना मूर्खतापूर्ण है।

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