(मनोज जायसवाल)
निश्चित रूप से आज सोशल मीडिया की दुनिया ऐसी हो गयी है,जब नजदीक रहते हुए भी भौतिक बातचीतों से दूर लोग मोबाईल पर उंगली फिरा रहे होते हैं। दुनिया भर के दिखावे आडंबर में डुबे कई लोग सोशल पटल पर जन्म दिवस से लेकर श्रद्वांजलि उक्त पटल पर टेग कर रहे होते है।
दूर होने पर यह उचित भी, पर नजदीक होते महज कर्तव्य की इतिश्री करना भौतिक संबंधों की कडी से कमजोर ही साबित होता है। ऐसी बात नहीं कि सब ऐसा ही करते हैं,बल्कि समझदार हमेशा जीवन के महती पलों पर भौतिक मुलाकातों,भौतिक बातों के माध्यम ही बधाई शुभकामनाएं या हाल चाल जाना करते हैं।
सोशल पटल में चैटिंग से दूर लोग उन क्षणों पर दूर हों तो भौतिक रूप से मोबाईल पर काल कर बात कर लेना उचित समझते है। कारण कि बात किये जाने से एक दूसरे की आवाज के साथ जो संवेदनाएं महसूस की जा सकती है,वह चैट में नहीं। फिर समझदार लोगों में यह माना भी जाने लगा है कि संबंधों की खानापूर्ति निभाना है तो सोशल में पोस्ट कर दें।
बात जब कभी भौतिक मुलाकातों पर आती है,तब पूरी शमिंदगी व्यक्त की जाती है, हम तो हमेशा आपको याद करते हैं। प्रश्न कहां? तो जवाब होता है सोशल पटल पर! ऐसे कई मौके जीवन में आते हैं,जिनसे हमारी बातचीत होती थी,कुछ समय से अपनी इगो भाव कहें या कभी कभी युं ही खटास पर दिली चाहत भी जिनसे सोशल पटल पर संबंधों को औपचारिकता निभाते आ रहे थे। कभी जीवन में कोई हादसे हों, कभी मौत हों तब उस पल याद आता है कि काश हम उनसे भौतिक रूप से बात कर लिए होते। मलाल हमेशा के लिए।
कभी-कभी वो याद करने वाले से अपनी जिद कहें या इगो कि हम बात नहीं करते। लेकिन एक दिन हमारी जिद टूट जाती है,जब उनकी आवाज हमें कभी सुनायी नहीं दे सकता। सिर्फ यादें ही शेष रह जायेंगी। यानि याद करने वाला वह अब हमारी याद बन गया।
इन शब्दों में शायद किसी ने सच कहा है–
टूट जायेगी तुम्हारी जिद की आदत उस दिन ऐ दोस्त।
जब पता चलेगा कि याद करने वाला अब याद बन गया।।